Hadd hai means !!
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कल कहा कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग पदमावती के विरोध में कोई बयान न दे, हम कानून के शासन में बैठे है, इससे केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड दबाव में आ सकता है।
माननीय आप क्यों चिंतित हो पदमावती के भविष्य को लेकर ?
क्या आपको देश की संस्कृति की रक्षा की कोई चिंता नहीं ?
ऐसा कौनसा कानून है जिसके तहत कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति किसी फिल्म की गलत पटकथा के विरुद्ध नहीं बोल सकता ?
क्या आपके इस निर्देश से अभिव्यक्ति की आजादी नामक चिड़िया नहीं छटपटायेगी ?
क्या वजह थी कि आपने पदमावती विवाद से जुड़ी याचिकाओं को सुनने से मना कर दिया, जबकि एक आतंकवादी की फांसी रुकवाने को दायर याचिका सुनने को आप रात को दो बजे अदालत लगाकर बैठ जाते है।
केरल के लव जिहाद मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता अखिला अशोकन उर्फ हादिया को तमिलनाडु के सालेम में अपनी होम्योपैथी की पढ़ाई करने के लिए सुरक्षा प्रदान करने हेतू केरल पुलिस को तमिलनाडु में भेजकर तैनात कर दिया।
बड़ी चिंता है माननीयों को लव जिहाद की पीड़िता को सुरक्षित रखने की।
वह भी तब, जब वो यह कह रही है कि पढ़ाई पूरी करते ही सीरिया जायेगी।
सीरिया जाकर आईएसआईएस की एक और आतंकी बन जायेगी।
क्या देश की सुरक्षा के प्रति माननीय की कोई ज़िम्मेदारी नहीं ?
कौनसा कानून है जो ऐसे समाजकंटकों और देशद्रोही लोगों को प्रश्रय देने के लिए माननीय को मजबूर कर रहा है ?
दूसरी तरफ लखीमपुर में देश के दुश्मन हाफिज सईद की आज़ादी का पटाखे फोड़ कर जश्न मना रहे लोग माननीयों को बिल्कुल नजर नहीं आ रहे।
क्या इन पटाखों का धुआं देश की सुरक्षा के लिए प्रदूषित वातावरण बनाने में मददगार नहीं है ?
क्या समझा जाये इस अनीति को ?
कानून और संविधान क्या सिर्फ देशद्रोहीयों और समाजकंटकों को सुरक्षा देने के लिए ही है।
विगत दिनों में देखा जा रहा है कि न्यायपालिका अपने दायरे से बहुत बाहर जाकर विभिन्न मुद्दों पर अति-सक्रियता दिखा रही है। कई बार अन्य लोकतांत्रिक संस्थाओं के अधिकारक्षेत्र में अतिक्रमण भी करते पाये गये है, लेकिन संविधान की सर्वोच्चता के तहत विशेषाधिकार की परिकल्पना का दुरुपयोग करके लगभग निरंकुशता दिखा रहे है।
लगता है कि अब समय आ गया है कि समूचे संविधान का पुनरीक्षण किया जाये और सभी संवैधानिक संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र तय किये जायें।
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